इटावाः चंबल और यमुना का दोआबा दो दिवसीय चंबल लिटरेरी फेस्टिवल का गवाह बना। यहां उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान तक फैले चंबल अंचल के साहित्य और कला जगत का जमावड़ा हुआ।


‘चंबल: इतिहास और संस्कृति’ सत्र में इतिहासकार देवेन्द्र सिंह चौहान ने कहा कि चंबल विद्रोह और विद्रोहियों की भूमि है। अंग्रेजों के शासन काल में यह समूचा अंचल अंग्रेजों के लिए चुनौती बना रहा। चंबल परिक्षेत्र के प्राचीन दस्तावेजों में यहां के विद्रोहियों की गाथाएं और उनके दमन की कहानियां दबी हुई हैं।

इटावा के एक गांव फांसिया का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि यहां अंग्रेजों ने लगातार दमन चक्र चलाया। बंसरी गांव में तो एक वर्ष तक लोगों ने अपने संसाधनों से क्रांतिकारियों की सहायता की। उन्होंने इसे सैनिकों की नर्सरी भी कहा। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि चंबल के इतिहास को चंबल के स्रोत से जानना चाहिए। रामप्रसाद बिस्मिल, गेंदालाल दीक्षित, जंगली और मंगली आदि विद्रोहियों के आख्यानों से उन्होंने चंबल के पराक्रम को व्यक्त किया। उन्होंने चंबल के परिक्षेत्र को मेधा से परिपूर्ण क्षेत्र भी कहा। पांचवीं शताब्दी में चंबल संभाग के विद्वान परमार्थ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उस समय चीनी शासक ने परमार्थ को सांख्य दर्शन का चीनी अनुवाद और भारतीय दर्शन के बारे में जानने के लिए बुलाया था। देवेन्द्र सिंह चौहान ने चंबल के विभिन्न नदियों के दोआब के भौगोलिक क्षेत्र की विशिष्टताओं को भी अपने व्याख्यान में उद्घाटित किया।

कार्यक्रम में अपना विचार व्यक्त करते हुए क्रांतिकारी कवि और लेखक देव कबीर ने कहा कि स्वाधीनता आंदोलन में सभी वर्ग, समुदाय और वर्णों का सहयोग मिला। इसे किसी विशेष समुदाय और जाति से जोड़कर देखना सम्यक दृष्टि नहीं है।



कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. रमाकांत राय ने चंबल के मिथकीय अवधारणा के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि यह नदी अभिशापित कही गई है। इसके तट पर तीर्थ और घाट नहीं हैं और इसके बारे में यह कहा गया है कि इसमें पानी नहीं रक्त संचरित होता है। किंतु अब नए ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में यह मिथ टूट रहा है। इसका नया स्वरूप निर्मित हो रहा है, जो स्वाधीनता संग्राम के रणबांकुरों से जुड़ा हुआ है।


कार्यक्रम की अध्यक्षता कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया महाविद्यालय के प्रबंधक वीरभान सिंह भदौरिया ने किया। कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह से पूर्व आजादी योद्धा कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए और दीप प्रज्वलित कर इस आयोजन को एक महत्वपूर्ण पहल कहा।

चंबल साहित्य उत्सव के दूसरे सत्र ‘कविताओं में चंबल’ में वरिष्ठ कवि विजय सिंह पाल ने अपनी विख्यात कविता मेरी पीर सुनाई। भिंड से पधारे कवि डॉ. जितेंद्र बिसारिया ने अपनी विद्रोही कविताओं से विशिष्ट पहचान छोड़ी। युवा कवियत्री गायत्री मिश्रा ने अपनी कविताओं से मुग्ध कर दिया। कवि महेंद्र मिहोनवी ने बुंदेली और भदावरी गजलों के चुटीले और धारदार व्यंग्य से सीधे सत्ता और कट्टरता पर चोट किया। शायर शाहिद महक और कवि गणेश शर्मा ‘विद्यार्थी’ ने खूब तालियां बटोरी। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि और साहित्यकार डॉ. कुश चतुर्वेदी ने की। चंबल साहित्य उत्सव की सांस्कृतिक संध्या में लोकगायक सद्दीक अली और अंजाना पार्टी की प्रस्तुतियां देर रात तक चलतीं रहीं।

चंबल लिटरेरी फेस्टिवल के तीसरे सत्र ‘चंबल: फिल्में और लोक कलाएं’ विषय पर फिल्मकार इंजीनियर देवेन्द्र सिंह ने बोलते हुए कहा कि चंबल विद्रोह, प्रतिक्रिया और क्रांति की भूमि है लेकिन चंबल पर बनी फिल्मों ने एक ही पहलू को बार-बार दिखाया है। जिससे यहां की छवि देश से बाहर भी एकतरफा बन गई। उन्होंने कहा कि आस्ट्रेलिया में रहता हूं तो वहां कि लोग पूछते हैं कि आपके सिनेमा में ऐसा ही क्यों दिखता है। इसीलिए चंबल की संस्कृति, भाषा, बच्चों और महिलाओं को केन्द्र में रखकर मैं चंबल क्षेत्र में अपनी फीचर फिल्म का फिल्माकंन करने जा रहा हूं। फिल्म निर्माण उद्योग से जुड़े खालिद नाइक ने कहा कि सिनेमा में चंबल घाटी के अमूल्य धरोहरों को शामिल करके ही इन खूबसूरत विरासतों के साथ इंसाफ किया जा सकता है।

पृथ्वीराज जैसी बड़ी बजट की फिल्मों के कॉस्ट्यूम डिजाइनर संजीव राज सिंह परमार ने अपने फिल्मी कैरियर के दो दशकों के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि चंबल मैं तमाम सच्ची कहानियां बिखरी पड़ी हैं। इन्हें यहां की बोली-भाषा में पिरोने की जरूरत है। अध्यक्षता करते हुए पंचायतराज महिला महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. श्यामपाल सिंह ने चंबल पर बनी चुनिंदा फिल्मों की चर्चा की। तीसरे सत्र का संचालन दस्तावेजी फिल्म निर्माता डॉ. शाह आलम राना ने किया।



समापन सत्र ‘चंबल के सरोकारी रचनाकार’ विषय पर बोलते हुए प्रसिद्ध कथाकार व उपन्यासकार महेश कटारे ने कहा कि चंबल का पराक्रम और इसकी मेधा का विस्तार दूर दूर तक ख्याति प्राप्त करता रहा है। उन्होंने चंबल परिक्षेत्र की भौगोलिक और सांस्कृतिक विशिष्टताओं को उपनिषद में आए सत्यकेतु जाबालि की कथा से जोड़कर उद्घाटित किया। कहा कि चंबल संभाग कर्मठता को प्रश्रय देता है। यह उर्वर परिक्षेत्र है। उन्होंने कहा कि चंबल के अभिशापित होने का एक लाभ यह हुआ कि यह नदी अब भी देश की सबसे कम प्रदूषित नदी है। उन्होंने साहित्य की महत्ता बताते हुए कहा कि इतिहास में सिर्फ पात्र और तिथियां सही होती हैं जबकि उपन्यास में नाम और तिथियों के अलावा सब कुछ सच होता है। इसलिए साहित्यिक रचनाओं के सत्य को कालजई मानना चाहिए।

वरिष्ठ स्तंभकार और विद्वान डॉ. विद्याकांत तिवारी ने अध्यक्षीय उद्बबोधन में कहा कि चंबल परिक्षेत्र केवल डाकुओं, जराएम पेशा अथवा बीहड़ के लिए ही नहीं जाना जाता। यहां के श्रमजीवी लोग, कठिन जीवनी शक्ति एक विशेष पहचान है। उन्होंने यहां की दुधारू, भदावर भैंस, विशेष बकरियां और जैव विविधता का उल्लेख करते हुए चंबल की मिट्टी को विविधधर्मी बताया। उन्होंने यहां के साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्कार पर भी प्रकाश डाला।

समापन सत्र का संचालन लेखक डॉ. रमाकान्त राय ने किया, उन्होंने अतिथियों का सम्मान किया और चंबल लिटररी फेस्टिवल को एक जनजागरुकता अभियान बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन से जो सक्रियता आती है, वह धारणा निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है।

चंबल लिटरेरी फेस्टिवल के संस्थापक डॉ. शाह आलम राना ने बताया कि यह प्रयास चंबल को पहचानने का एक उपक्रम है। सीएलएफ के जरिये यहां के इतिहास और संस्कृति तथा साहित्य को सबके समक्ष लाने की बीते तीन वर्षो से निरंतर कोशिश जारी है। चंबल लिटेरी फेस्टिवल में पुस्तक प्रदर्शनी, फोटो और पोस्टर प्रदर्शनी भी लगाई गई।

चंबल लिटररी फेस्टिवल में पोस्टर प्रतियोगिता, रंगोली प्रतियोगिता और क्विज प्रतियोगिता का आयोजन सीएलएफ से जुड़े डॉ. कमल कुमार कुशवाहा, राजीव यादव, चन्द्रोदय सिंह चौहान, अनीता त्रिपाठी और आदिल खान की देखरेख में सम्पन्न हुआ। जिसमें रायल आक्सफोर्ड इंटरनेशनल, सेवन हिल्स इंटर कालेज, शिवाजी शिक्षा निकेतन इंटर कालेज, अर्चना मेमोरियल एसजीएम इंटर कालेज, सइसाइन स्कूल, लिटिल रोज स्कूल, कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया महाविद्यालय, पान कुंवर इंटरनेशनल स्कूल, एसडी इंटर कालेज के विद्यार्थियों ने पेंटिंग, रंगोली और क्विज प्रतियोगिता में सक्रिय हिस्सा लिया।

‘चंबल गाथा’ विषय पर रंगोली प्रतियोगिता के सीनियर और जूनियर वर्ग में प्रथम स्थान अर्चना मेमोरियल इंटर कालेज, विशेष वर्ग में प्रथम स्थान शिवाजी शिक्षा निकेतन का रहा। ‘चंबलः एक काव्यधारा’ विषय पर पेंटिग प्रतियोगिता में सीनियर वर्ग में प्रथम स्थान पान कुंवर इंटरनेशनल स्कूल के कमलकांत, जूनियर में सइसाइन स्कूल के शुभम और विशेष वर्ग में प्रथम स्थान कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया महाविद्यालय रहा।

‘चंबल पर्यटन’ विषय पर हुई क्विज प्रतियोगिता में पांच टीमों ने हिस्सा लिया। सीएलएफ अतिथियों द्वारा सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र और हर श्रेणी में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पाने वालों को मेडल दिये गये

(Copy-योगेश चक्रवर्ती, स्वतंत्र पत्रकार)

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